
बुद्धवार को सोशल मीडिया पर Zomato को लेकर उठा विवाद शांत होने का नाम नही ले रहा है। इस मुद्दे पर सोशल मीडिया दो खेमो में बँटी हुई नजर आ रही है। इस मुद्दे पर एक पक्ष जहाँ Zomato के साथ खड़ा दिखाई दे रहा है तो वही दूसरा पक्ष Zomato पर दोहरे मापदंड अपनाने का इल्जाम लगा रहा है।
दरअसल यह सारा विवाद तब खड़ा हुआ जब एक यूजर ने अपना ऑर्डर इसलिये रद्द कर दिया क्योंकि डिलिवरी बॉय हिन्दू नहीं था। ऑर्डर रद्द करने के बाद उसने इसके बारे में ट्वीट किया और इसके पीछे धार्मिक वजह बताई।
यूजर की इसी ट्वीट पर ज़ोमैटो ने जवाब में कहा, ‘खाने का कोई धर्म नहीं होता, खाना खुद एक धर्म है।” जिसके बाद यह सारा बवाल खड़ा हो गया। अब सवाल उठता है कि क्या वाकई खाने का धर्म होता है या नही? हम आपको कुछ ऐसे ही मामले बताते है जब लोगो ने भोजन में धर्म खोजा।
We are proud of the idea of India – and the diversity of our esteemed customers and partners. We aren’t sorry to lose any business that comes in the way of our values. 🇮🇳 https://t.co/cgSIW2ow9B
— Deepinder Goyal (@deepigoyal) July 31, 2019
पहला मामला है मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर का, अगस्त 2016 में शहर के 56 मदरसों ने मिड डे मील लेने से इनकार कर दिया। इसके पीछे उन्होंने वजह बताई की ये खाना भगवान को भोग लगाने के बाद बच्चों के पास भेजा जाता था, जो इस्लाम धर्म के खिलाफ है। दरअसल मिड-डे मील का ठेका इस्कॉन मंदिर से जुड़े एक ट्रस्ट को दिया गया था, जो शहर के सभी स्कूलों में मिड-डे मील सप्लाई करता था।
दूसरा मामला ‘अक्षयपात्र फाउंडेशन’ से जुड़ा है, इस मामले में The Hindu ने 31 मई को एक ‘विस्तृत’ रिपोर्ट छाप कर दावा किया था कि गौड़िया वैष्णव संस्था इस्कॉन द्वारा संचालित हिन्दू एनजीओ अक्षयपात्र फाउंडेशन कर्नाटक के बच्चों को बिना प्याज-लहसुन का खाना परोस कर उनपर ‘अपनी विचारधारा थोप रहा है’, और बच्चे उसका बनाया हुआ खाना खाना ही नहीं चाहते, और इसलिए वह खाना कम खा रहे हैं (और अतः उनका विकास नहीं हो रहा, मिड डे मील स्कीम का औचित्य ही नहीं बच रहा, और यह बच्चों के साथ अन्याय है कि ‘ब्राह्मणवादी, शाकाहारवादी श्रेष्ठताबोध’ का दर्शन उन पर खाने के ज़रिए थोपा जा रहा है)।
आपको बताते चले खुद Zomato जो यह बता रहा है कि भोजन का धर्म नही होता वह खुद इस मामले में डबल स्टैंडर्ड रखता है। वह अपने ग्राहकों को नवरात्रि और रमज़ान के लिए विशेष मेन्यू उपलब्ध करवाता है। मुस्लिम ग्राहकों को ‘हलाल मीट’ और हिन्दुओ के लिए शाकाहारी नवरात्रि स्पेशल थाली सप्लाई करता है, क्यों भाई जब भोजन का धर्म नही है तो यह डबल स्टेन्डर्ड क्यों है?
बहरहाल यह तो भोजन के धर्म की बात हुई, बाज लोग तो गाड़ियों में धर्म खोज लेते है। अभी हाल में हमने ट्विटर पर कई बुद्धिजीवी पत्रकार की ट्वीट पढ़ी जिनमे उन लोगो ने ओला कैब सिर्फ इसलिए लौटा दी कि गाड़ी के पीछे एंग्री हनुमान जी का स्टिकर लगा हुआ था। ऐसा ही मामला समाजवादी पार्टी के मुस्लिम विधायक नाहिद हसन द्वारा जारी बीजेपी से जुड़े दुकानदारों के बहिष्कार के फतवे का था। उस समय भी नाहिद हसन के इस फतवे पर इन कथित बुद्धिजीवियो ने चुप्पी साध ली थी। दरअसल सारी दिक्कत इसी दोहरे मापदंड को लेकर है।
होता यह है कि जब ऐसी नफरत हिन्दू समुदाय और उनके प्रतीकों के प्रति दिखाई जाती है तो समाज का यह कथित बुद्धिजीवी कहे जाने वाला तबका उसे पूरी तरह से नजरअंदाज कर देता है, और जब वही बाते एक विशेष समुदाय के हितों की होती है तो यही लोग नैतिकता और ज्ञान का पाठ लेकर हाजिर हो जाते है। इस वजह से हिन्दू खुद को उपेक्षित महसूस करने लगता है। अगर Zomato ने पहली बार ‘हलाल भोजन’ पर यह कहा होता है कि हम इस तरह का भोजन नही सप्लाई करेंगे क्योकि भोजन का धर्म नही होता तो यह सारा बवाल भी नही होता। एंग्री हनुमान का स्टिकर देखकर कैब कैंसल करने वाले दुत्कारे गए होते तो, नाहिद हसन जैसे लोगो के बयानों की कठोर निंदा की गई होती तो जो यह नफरत फैल रही है वह कभी नही फैलती।
यह भी पढ़े : Dear Zomato वालों, हलाल खाने के ऑर्डर पर ‘Religion’ वाले column में क्या लिखते हो?
You must log in to post a comment.